प्रस्तावना
वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो बेरोजगारी की समस्या केवल भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व की एक गंभीर समस्या है। बेरोजगारी एंव ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति कार्य सक्षम होने के बावजूद भी अपनी जीवनयापन के लिए एक उपयुक्त रोजगार प्राप्त नहीं कर पाता है।बेरोजगारी की समस्या विकसीत देशों में विकासशील देशों की अपेक्षा काफी कम है। भारत जैसे जनसंख्याबाहुल्य विकासशील देश में बेरोजगारी केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक, समाजिक, मानसिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं को भी जन्म देता है। बेरोजारी ऐसी समस्या है जो व्यक्ति के साथ-साथ देश के विकास को भी बाधित करती है। बेरोजगारी से युवावर्ग का भविष्य अंधकारमय हो जाता है और युवावर्ग के आत्मसम्मान एवं सामाजिक पछ को कमजोर करती है।
बेरोजगारी के कारण
बेरोजगारी के अनगिनत कारण हैं जो इसे एक गंभीर वैश्विक समस्या बनाते हैं। बेरोगारी का सबसे प्रमुख और पहला कारण है अनयंत्रित जनसंख्या वृद्धि। भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है और भारत की जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से बढ रही है कि 2030 तक जनसंख्या के मामले में पहला देश बन जायेगा। इस कारण उपलब्ध रोजगार के अवसरों की तुलना में श्रमिकों की संख्या कहीं अधिक है।
दूसरा, हमारी शिक्षा प्रणाली आज भी अंग्रेजो के द्वारा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार सैद्धांतिक ज्ञान पर आधारित है। हमारी शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक और कौशल-आधारित प्रशिक्षण का अभाव है। 10वीं, 12वीं, यहाँ तक कि स्नातक किया हुआ भी युवा नौकरी के लिए जरुरी कौशल भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं और बेरोजगार रह जाते हैं।
तीसरा, वर्तमान समय में तकनीकि प्रगति और स्वचालन के क्षेत्रों में हुई क्रांति ने या तो पारंपरिक नौकरियों को समाप्त कर दिया है या जहाँ पहले बहुत सारे श्रमिकों के कामों को केवल एक मशीन कर दे रहा है। उदाहरण के लिए , मशीनों और कृत्रिम बुद्धिमता ने कारखानों, कार्यालयों, विनिर्माण क्षेत्रों, बैंकिग क्षेत्रों में मानव श्रम की आवश्यकता को कम कर दिया है।
चौथा, ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर पूरी तरह निर्भर है एवं इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास की कमी बेरोजगारी को बढ़ाती है। उपर्युक्त के अलावा अर्थिक मंदी, नीतिगत कमियां, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी एवं नैतिक बुनियादी ढांचे की कमी भी बेरोजगारी की समस्या को बढाती हैं।
बेरोजगारी के दुष्परिणाम
बेरोजगारी के दुष्प्रभाव भयावह है। बेरोजगारी के प्रभाव व्यक्ति, समाज और राष्ट्र पर गहरा नकरात्मक प्रभाव डालते है। प्रमुख कारणों में सबसे पहला, इससे गरीबी और आर्थिक असमानता में बढावा होता है। रोजगार के अभाव में व्यक्ति अपने जीवनयापन की मूलभूत आवश्कताओं को भी पूरा नहीं कर पाता, जिससे भुखमरी और कुपोषण जैसी गंभीर समस्याएँ उत्नपन्न होती हैं।
दूसरा, बेरोगारी युवावर्ग में हताशा, निराशा और मानसिक तनाव का जन्म देती है, जिसका मानसिक स्वास्थ्य दुष्प्रभाव पड़ता है। अपनी जरुरतों को पूरा न करने के अभाव में कई बार आत्महत्या जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं।
तीसरा, बेरोजगारी समाज में अशांति, अपराध, चोरी-डकैती को बढ़ावा देती है। बेरोजगार युवावर्ग अपने परिवार के जरुरतों को पूरा करने के लिए गलत रास्तों जैसे चोरी, डकैती, अपहरण, गलत तरीको से पैसा अर्जन, नशाखोरी, इत्यादि का सहारा ले लेते है। इन सभी के अलावा, बेरोजगारी समाजिक सामंज्स्य को खोखला करती है एवं समुदायों के बीच तनाव व दूरीया पैदा करती है। बेरोजगारी देश की आर्थिक प्रगति को प्रभावित करती है, क्योंकि उत्पादकता और कर राजस्व में कमी आती है।
बेरोजगारी का समाधान
बेरोजगारी जैसी समस्या को खत्म करने के लिए सरकार, समाज एवं आम नागरिक को एक साथ मिलकर काम करना होगा। सर्वप्रथम परंपरागत शिक्षा प्रणाली में सुधार करना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में व्यवहारिक एवं कौशल-आधारित शैक्षणिक पाठ्यक्रम शुरु किए जाने चाहिए। कौशल आधारित पाठ्यक्रमों में डिजिटल कौशल, तकनीकी प्रशिक्षण, उद्यमिता एवं मशीनी पढाई को शामिल किया जाना चाहिए।
दूसरा, सरकार को छोटे एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। छोटे और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए इनको करों में छूट, कम ब्याज दर, एवं बुनियादी ढांचे की सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। तीसरा, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योगों, जैसे खाद्य प्रसंस्करण, हस्तशिल्प, डेयरी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन इत्यादि को बढ़ावा देना चाहिए।
चौथा, आमजन को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए स्टार्टअप और लघु व्यवसायों के माध्यम से विशेष योजनाएं शुरु करनी चाहिए। पाचवां, जनसंख्या नियंत्रण के लिए लोगो को जागरुक करना चाहिए । परिवार नियोजन एवं जनसंख्या नियंत्रण हेतु अभियान चलाने चाहिए। साथ ही निजी क्षेत्रों के उद्यमों को भी रोजगार उपलब्ध कराने में भागीदार बनाना चाहिए।
निष्कर्ष
बेरोजगारी एक ऐसा अभिशाप है जो न केवल व्यक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि पूरे समाज और देश की विकास को बाधित करता है। बेरोजगारी जैसी समस्या को समाप्त करने के लिए दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनो तरह के रणनीतियों की आवश्यकता है। इस समस्या को हल करने के लिए शिक्षा के प्रणाली में सुधार, कुटीर उद्योंगों को प्रोत्साहन, स्वरोजगार को बढावा और जनसंख्या नियंत्रण जैसे कदम महत्वपूर्ण हो सकते है।
यदि सरकार के साथ समाज और आम नागरिक मिल कर प्रण के साथ इस समस्या का सामना करें, तो निश्चित रुप से बेरोजगारी जैसी समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मानजनक रोजगार उपलब्ध कराना न केवल आर्थिक विकास के लिए जरुरी है, बल्कि यह समाज के सामंज्स्य और राष्ट्र के प्रगति के लिए भी अनिवार्य है। हम सब मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहां सभी के अपने जीवन यापन के लिए कम से कम एक उपयुक्त रोजगार उपलब्ध हो।